{Biology Notes for Class 10th in hindi } अनुवांशिकता क्या है || what is heredity in Hindi ||

अनुवांशिकता [Heredity]

अनुवांशिकता अनुवांशिक लक्षण - माता-पिता से जो लक्षण संतानों में पहुंचते हैं उसे अनुवांशिकता या अनुवांशिक लक्षण कहते है

अनुवांशिकी -: जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें अनुवांशिक लक्षणों का अध्ययन करते हैं उसे अनुवांशिकी कहते हैं अनुवांशिकी शर्त वैज्ञानिक वेटसन ने किया था।,

Notes - जीवो में पाई जाने वाली विभिन्नताएं एक पीढ़ी का परिणाम नहीं होता बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले परिवर्तनों के संचयन का परिणाम होता है।

विभिन्नताएं (Variations) - एक ही जाति के विभिन्न सदस्यों के मध्य और असमान लक्षण पाए जाते हैं। जिनके कारण वे एक दूसरे से अलग दिखते हैं विभिन्नताए कहलाती हैं।

यह दो प्रकार का होता है
  1. कायिक विभिन्नताएं (Somatic Variations) -
  2. यह विभिन्नताएं वंशागत नहीं होती है। तथा इसका प्रभाव शारीरिक कोशिकाओं पर पड़ता है। वातावरणीय कारणों ( ताप ,जल, वायु ) के कारण से यह विभिन्नताएं होती है।

  3. जननिक विभिन्नताएं(Blastogenic or Germinal Variations)
- यह वंशागत विभिन्नताएं हैं। जो जनन कोशिकाओं में होती हैं। यह उत्परिवर्तन के कारण या पूर्वजों में पहले से ही उपस्थित होती है।

विभिन्नताओ के महत्त्व (Significance of Variations)
  • यह जैव विकास का आधार है

  • यह अनुवांशिकता का आधार है।

  • यह प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवो में अनुकूलताए उत्पन्न करता है।

अनुवांशिकता के जनक (father of Genetics) - मेंडल का जन्म ऑस्ट्रिया ब्रून शहर के छोटे से गांव सिलिसिया में 22 जुलाई 1822 ई में हुआ था। 1847 ई में ब्रुन शहर में उत्पादरी नियुक्त किए गए। 1857 ई में मटर सात विपरीत लक्षणों का वंशागत अध्ययन आरंभ किया था। 1865 ई में सिद्धांत एवं निष्कर्षों को ब्रुन के "नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Natural histry society) के सभा में रखा। तथा 1866 में इसे पादप संकरण के प्रयोग के नाम से प्रकाशित किया गया। तथा 1884 में इसकी मृत्यु हो गई।

सन 1900 में हॉलैंड के वैज्ञानिक ह्यूगो डि ब्रिज (Hugo de Varies) जर्मनी के कार्ल कारेंस तथा आस्ट्रिया के शैरमाक ने इनकी खोज को पुनः खोजा। इसलिए इन वैज्ञानिकों को अनुवांशिकी की पुनः खोजकर्ता तथा ग्रेगर जार मेंडल को अनुवांशिकी के जनक कहा जाता है।

मेंडल के सफलता के कारण - इसके मुख्य दो लक्षण है।
  1. मटर के पौधे का चुनाव

    • मटर का पौधा वार्षिक एवं द्विलिंग होता है।

    • इसमें स्वपरागण की क्रिया पाई जाती है।

    • इसमें अनेक तुल्यात्मक लक्षण पाए जाते हैं।

    • इसमें कृतिम परागण द्वारा संकरण किया जा सकता है।

  2. कार्य विधि के कारण

    • एक समय में एक ही लक्षण का अध्ययन किए।

    • इन्होंने दो-तीन या अधिक पीढ़ियों का अध्ययन किया।

    • उन्होंने प्रत्येक पीढ़ियों का पूर्व लेखा-जोखा रखा।

    • इन्होंने केवल समयुग्मजी लक्षणों को चुना जिसे उन्होंने शुद्ध कहा था।

मेंडल द्वारा चुने गए साथ तुलनात्मक लक्षण


  • तने की लंबाई - लम्बा व बौना

  • फूलों का रंग - बैगनी व सफेद

  • बीज का आकार - गोल व झुर्रीदार

  • बीच का रंग - पीला तथा हरा

  • फलों का आकार - फूली हुई तथा संकिर्ण

  • फलों का रंग - पीला तथा हरा

  • पुष्पों की स्थिति - कक्षीय तथा अंतस्थ

मेंडलीफ के नियमों में प्रयुक्त शब्दावली


  1. जीन या कारक (Gene or factor) -
  2. सजीव में किसी लक्षणों की वंशागति एवं नियंत्रण के लिए उत्तरदाई होते हैं जीन कहलाते है। यह आनुवंशिकी क्रियात्मक इकाई है जीन शब्द जोहानसन ने दिया था।

  3. युग्मविकल्पी या एलिलोमार्फ ( Allele or Allelomorph) -
  4. विपरीत लक्षण वाले जोड़े को एलिल्स कहते है। जैसे - Rr ,XY, Tt, इत्यादि अतः एक ही विपरीत लक्षण के दो विकल्पों को नियंत्रित करने वाले जीन के जोड़े को एलिलोमार्फ कहते है।

  5. समयुग्मजी व विषमयुग्मजी (Homo zygous and Heterozygous) -
  6. जब एक ही लक्षण को नियंत्रित करने वाले दोनों जीन एक प्रकार की हो तो इसे समयुग्मजी कहते हैं। यह लक्षण शुद्ध ( TT, or, tt ) होते है। इनमें केवल एक प्रकार के युग्मक बनते हैं। जब एक ही लक्षण को नियत्रित करने वाले दोनों जीन अलग अलग हो तो इसे विषम युग्मजी कहते हैं। यह लक्षण संकर (Tt ) होते है। यह दो अलग प्रकार के युग्मक बनाते हैं।

Notes - सन 1092 ई में वैज्ञानिक वेटसन तथा सांडर्स ने ये शब्द दिए।

प्रभावी तथा अप्रभावी ( Dominant and Recessive) - जो लक्षण समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी दोनों अवस्थाओं में दिखाई दे या जो लक्षण बाहर से दिखाई दे। उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं। जो लक्षण समयुग्मजी अवस्था में दिखाई दे उसे अप्रभावी लक्षण करते हैं।

संकर तथा संकरण (Hybrid and Hybridisation) - जब तुल्यात्मक लक्षण वाले जनको के मध्य जो क्रॉस कराया जाता है। तो इस क्रिया को संकरण तथा उत्पन्न संतान को संकर करते हैं।

एकसंकर संकरण (Monohybrid Hybridisation) - एक जोड़ी तुल्यात्मक लक्षणों के अध्ययन के लिए जो संकरण कराया जाता हैं। उसे एक संकरण कहते हैं।

द्विसंकरण (Dihybrid Cross) - दो जोड़ी तुल्यात्मक लक्षणों के अध्ययन के लिए जो संकरण कराया जाता है। तो इसे द्वि संकरण कहते हैं।

शुद्ध जाति (Pure Species) - ऐसे पौधे जो समान लक्षण वाले पौधे से उत्पन्न होते हैं। शुद्ध जाति कहलाते हैं। इनकी जीन समयुग्मजी होते हैं। इनसे केवल शुद्ध जाति के संतान उत्पन्न होते हैं।

संकर जाति (Hybrid Species) - ऐसे पौधे जो भिन्न-भिन्न लक्षणों वाले पौधे से उत्पन्न होते हैं। संकर जाति कहलाते हैं। इनके जीन समायुग्मजी होते हैं। इनसे केवल शुद्ध जाति के संतान उत्पन्न होता है।

जीनोंटाइप तथा फिनोटाइप - वह लक्षण जो बाहर से दिखाई देते हैं। उसे फिनोटाइप कहते हैं। इसकी जीनी संरचना समान तथा असमान दोनों होते हैं। जैसे TT, Tt वह लक्षण जो बाहर से दिखाई न दे। तथा जिनीक संगठन को व्यक्त करें। उसे जीनोटाइप कहते हैं। इन दोनों शब्दों की खोज 1909में जॉनसन ने किया था।

संकर पूर्वज संकरण - जब विषम युग्मजी संकर संतानों (F1) तथा समायुग्मजी जनकों के मध्य क्रॉस कराया जाता है। तो उसे संकर पूर्वज संकरण कहते हैं। जैसे - tt x Tt, TT x Tt

परिक्षण संकरण - प्रभावी समलक्षणी तथा और अप्रभावी जनक के मध्य क्रॉस कराई जाए तो उसे परीक्षण संकरण कहते हैं।

एकल लक्षण - अनेक पीढ़ियों में क्रॉस के बाद हैबिट में भी जो लक्षण अपना व्यक्तित्व बनाए रखें। एकल लक्षण कहलाते हैं।

F1 तथा F2 - पैतृक पीढ़ियों के बीच संकरण कराने पर प्राप्त पीढ़ी प्रथम पीढ़ी कहलाती है। तथा F1 पीढ़ी से प्राप्त जीवो के रूपांतरण से प्राप्त पीढ़ी F2 पीढ़ी कहलाती हैं।

मेंडल के नियम - (मेंडल के तीन नियम हैं)
  1. प्रभाविता का नियम।
  2. पृथक्करण या युग्मको के शुद्धता का नियम।
  3. स्वतंत्रता अपब्युहन का नियम।
  1. प्रभाविता का नियम - जब परस्पर विपरीत लक्षण वाले पौधों के बीच संकरण कराए जाता है। तो F1 पीढ़ी में जो लक्षण प्रदर्शित होते हैं। उसे प्रभावी लक्षण तथा जो प्रदर्शित नहीं होते हैं। तो उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं।

  2. Notes - F1 पीढ़ी में सभी पौधें अशुद्ध व लंबे प्राप्त होते हैं।

  3. पृथक्करण या युग्मको के शुद्धता का नियम - इस नियम के अनुसार जोड़ों में उपस्थित जीन युग्मक निर्माण के समय एक दूसरे से पृथक हो जाते हैं। और एक युग्मक में जोड़ों का केवल एक ही जीन पहुंचता है।

  4. स्वतंत्र अपब्युहन का नियम - जब दो या दो से अधिक तुलनात्मक वाले जीन के जोड़े एक दूसरे से स्वतंत्र होकर युग्मको में आ जाते हैं। और निषेचन के समय युग्मक परस्पर नियमित ढंग से संयोजित होते हैं। इसके फलस्वरूप नए नए संयोग होते हैं। यह स्वतंत्र अपब्युहन का नियम हैं।
  5. मेंडल के नियमों का अपवाद


    अपूर्ण प्रभविता - जब तुलनात्मक लक्षण वाले जीवधारियों में संकरण कराने पर मध्यवर्ती लक्षण प्रकट होते हैं। और f1 पीढ़ी के जीवधारियों में स्वनिषेचन कराने पर f2 पीढ़ी का जीनोटाइप तथा फिनोटाइप का अनुपात समान होता है। तो यह लक्षण अपूर्ण प्रभाविता कहलाता है इसे 1930 ईस्वी में कार्ल कारेन्स ने दिया था।

    जैसे - गुलाबॉस

    इसका वैज्ञानिक नाम मीराविलस जलापा के लाल व सफेद पुष्प के संकरण से गुलाबी पुष्प तथा f1 पीढ़ी में स्वपरागण से लाल गुलाबी सफेद (1:2:3 ) पुष्प प्राप्त हुए।

    जैसे - एण्लैलुसियम मुर्गी के काले और सफेद से संकरण कराने पर नीले रंग के चूजे उत्पन्न हुए। F1 पीढ़ी में संकरण से F2 पीढ़ी में काले, नीले व सफेद चुंजे उत्पन्न हुए।

    समप्रभाविता - समप्रभाविता में दोनों ही जनको में लक्षण पृथक रूप से f1 पीढ़ी में प्रकट होते हैं।

    अनुवांशिक पदार्थ

    जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत आनुवंशिकता तथा जीवों की विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है। DNA एक अनुवांशिक पदार्थ है। जो प्रोकैरियोटिक कोशिका द्रव में फैले होते हैं। जबकि यूकैरियोटिक कोशिकाओं में DNA के साथ हिस्टोन नामक प्रोटीन के साथ मिलकर गुणसूत्र का निर्माण करते हैं।

    जो केंद्रक में उपस्थित होते हैं। गुणसूत्र पर उपस्थित जीन अनुवांशिक लक्षणों के वाहक होते हैं। अर्थात गुणसूत्र अनुवांशिक पदार्थ के वाहक होते हैं। इसका निर्माण न्यूक्लियक प्रोटीन से होता है। जो न्यूक्लिक अम्ल तथा क्षारीय प्रोटीन से बने होते हैं। न्यूक्लिक एसिड दो प्रकार DNA ,RNA का होता है।

    इसकी खोज 1869 ईस्वी में फ्रेडरिक मिशर के मवाद कोशिकाओं में खोजा था। जिसे न्यूक्लिक कहा। वैज्ञानिक अल्टमान ने 1889 ईसवी में न्यूक्लिक एसिड नाम दिया। सन 1893 ईस्वी में वैज्ञानिक कोसेल ने इसके रसायनिक संगठनों का पता लगाया। इसलिए 1910 ईस्वी में इन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। DNA के कृतिम संश्लेषण के लिए डॉ हरगोविंद खुराना को 1968 ईस्वी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।

    DNA (डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) का संरचना

    तीन घटक फास्फेट समूह , डी-ऑक्सीराइबोज तथा नाइट्रोजनीक्षारक का एक संयुक्त अणु है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। इसमें निम्न चार नाइट्रोजनी क्षारक उपास्थित होते है। एडिनीन ( Adenine ), ग्वानीन ( Guanin), थाइमीन (Thymine) , तथा साइटोसिन (Cytosine) होते है।

    इसका अधिकांश भाग केंद्रक में तथा कुछ भाग माइटोकांड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट में भी होता है। यह द्विकुण्डलित होता है। परंतु विषाणुओ में यह एक कुंडलिक होता है। जेम्स वाटसन एवं फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में DNA का आणविक मॉडल तैयार किया। इसलिए इन्हें 1962 में नोबेल पुरस्कार दिया।

    वॉटसन तथा क्रिक द्वारा प्रस्तुत DNA का अणु मॉडल

    DNA का गुण

    1. DNA का प्रत्येक अणु दो कुंडलीत पालीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं का बना होता है

    2. दो श्रृंखलाओं का निर्माण फास्फेट व शर्करा के प्रत्येक अणुओं से बनते हैं।

    3. फास्फेट समूह एक तरह की शर्करा के पांच कार्बन से तथा दूसरी ओर तीन कार्बन एस्टर बंधो द्वारा जुड़े रहते हैं जिसे फास्फेडाई एस्टर बंध कहते हैं।

    4. एक श्रृंखला के प्यूरीन दूसरी श्रृंखला के पिरामिडीन से हाइड्रोजन आबंधों द्वारा जुड़े होते हैं। एडेनिन सदैव थायमिन तथा साइटोसीन सदैव ग्वानिन से जुड़ा होता है।

    DNA का महत्व

    1. DNA एक अनुवांशिक पदार्थ है। जो सजीवों में अनुवांशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाता है।

    2. DNA कोशिका की सभी उपापचयी व अन्य जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता है।

    3. DNA स्वयं के संश्लेषण को निर्देशित करता है। इसे DNA प्रतिकृतिकरण या ग्रिफिथ का लिपिकरण कहते हैं।

    4. DNA द्वारा RNA का संश्लेषण किया जाता है जो कि प्रोटीन संश्लेषण के लिए अति आवश्यक होता है। इस प्रक्रम को अनुलेखन कहते हैं।

    RNA ( राइबो न्यूक्लिक अम्ल)

    यह केंद्रक के अंदर केंद्रिका में राइबोसोम तथा अन्तः प्रद्यपयी जालिका एवं कोशिका द्रव्य में पाया जाता है। यह पौधे जंतुओं विषाणु में एक सूत्री RNA होता है। यह अनुवांशिकी नहीं होता है। परंतु रियोवायरस में या द्विकुण्डलित एवं अनुवांशिकी होता है।इसमें थायमीन के जगह यूरेसिल पाया जाता है।

    RNA के प्रकार: यह तीन प्रकार के होते है।
    1. mRNA - इसका निर्माण द्वारा केंद्रक में होता है। यह अनुवांशिक संदेशों को राइबोसोम तक पहुंचाता है। यह राइबोसोम के सतह पर प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदाई होता है। तथा यह संदेश को केंद्रक से कोशिका द्रव में कौन के रूप में पहुंचाता है।

    2. rRNA - यह कूल RNA का 80%होता है तथा यह राइबोसोम में पाया जाता है। तथा राइबोसोम में प्रोटीन संश्लेषण के लिए स्थल प्रदान करता है।
    3. tRNA - यह कुल RNA का 15 % होता है। तथा कोशिका द्रव में पाया जाता है । इसका मुख्य कार्यअनुवादन में अमीनो अम्ल के अणुओ को राइबोसोम तक पहुंचाना है।

    DNA एवं RNA में अंतर

    DNA - DNA एक अनुवांशिक पदार्थ है जो कोशिकाओं के समस्त क्रियाओं का नियमन करता है। DNA में स्वद्विगु की क्षमता होती है ।इससे RNAका निर्माण भी होता है। इसमें डीऑक्सिराइबोस शर्करा होती है DNA मुख्यतः केंद्रक में पाया जाता है।

    RNA - यह कुछ विषाणु का ही अनुवांशिक पदार्थ होता है अन्य प्राणियों में इसका कार्य कोशिका नियमन में DNA की सहायता करना है। RNA में स्वद्विगुणन की क्षमता केवल विषाणुओ में पाई जाती है। कुछ विषाणुओ में RNA से DNA भी बन सकता है। इसमें राइबोस शर्करा होती है। यह मुख्यतया कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।

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